• Sample Image जै श्रीमन्नारायण,अशर्फ़ी भवन अयोध्या पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी श्री श्रीधराचार्य जी महाराज से जुड़ने के लिए धन्यवाद Sample Image

जगद्गुरु रामानुजाचार्य

कई जन्मों की तपस्या और गुरू पर विश्वास ने शबरी को राम से मिलाया: जगदगुरू श्रीधराचार्य

कई जन्मों की तपस्या और गुरु पर अटूट विश्वास के फलस्वरूप शबरी का भगवान राम से मिलन हुआ। शबरी, जो एक समर्पित भक्त थीं, ने गुरु मतंग ऋषि की आज्ञा का पालन करते हुए वर्षों तक राम की प्रतीक्षा की। उनकी भक्ति और निष्ठा इतनी प्रबल थी कि राम स्वयं शबरी के आश्रम आए और उनके प्रेम से भरे बेर ग्रहण किए। यह कथा दर्शाती है कि सच्ची भक्ति और गुरु की शिक्षाओं का पालन किसी भी साधक को परमात्मा तक पहुँचा सकता है। शबरी का यह प्रेरणादायक प्रसंग समर्पण और श्रद्धा की अद्वितीय मिसाल है।

भागवत कथा अमृत है- श्रीधराचार्य

भगवत कथा अमृत है” परम सत्य और आत्मिक आनंद का स्रोत है। यह भगवान के दिव्य लीला का वर्णन करती है, जो हमारे जीवन में भक्ति, प्रेम, और समर्पण का संचार करती है। कथा के श्रवण से मनुष्य के अंतर्मन में शांति, पवित्रता, और धार्मिकता का संचार होता है। भगवत कथा हमारे भीतर नकारात्मकता का नाश कर सकारात्मकता की ऊर्जा भरती है। यह धर्म, ज्ञान और मोक्ष के मार्ग को प्रकाशित करती है। भगवत कथा का निरंतर श्रवण जीवन को सार्थक बनाता है और परमात्मा के प्रति हमारी श्रद्धा को और अधिक प्रगाढ़ करता है। यही कारण है कि इसे अमृत कहा गया है।

किसी का अभिमान सहन नहीं करते भगवान : स्वामी श्रीधराचार्य

भगवान किसी का अभिमान सहन नहीं करते, यह सत्य सर्वविदित है। अभिमान से भरी आत्माएं परमात्मा के समीप नहीं पहुँच पातीं क्योंकि अभिमान उन्हें दूसरों से ऊपर दिखाता है। विनम्रता और सरलता ईश्वर को प्रिय हैं। भगवान सच्चे भक्तों के हृदय में निवास करते हैं, जो अहंकार मुक्त होते हैं। उन्होंने स्वयं धरती पर अवतार लेकर ये सिखाया कि जो विनम्रता और सेवा का मार्ग अपनाते हैं, वही सच्चे अर्थों में ईश्वर की कृपा प्राप्त करते हैं। अभिमान मानव को उसके सच्चे स्वभाव से दूर ले जाता है, इसलिए इससे मुक्त होकर ही ईश्वर की शरण में जाना सम्भव है।

भीड़ में खड़ा होना आसान है, लेकिन अकेले खड़े होने के लिए साहस चाहिए : स्वामी श्रीधराचार्य

भीड़ के साथ चलना, सामान्य धारणा और दिशा का अनुसरण करना आसान है क्योंकि इसमें व्यक्तिगत जोखिम नहीं होता। लेकिन जब कोई अकेले खड़ा होता है, अपनी आवाज़ उठाता है और सही का समर्थन करता है, तो उसे असली साहस की जरूरत होती है। अकेले खड़ा होना अपनी धारणाओं, मूल्यों, और सच्चाई का सामना करने का प्रतीक है, जो अक्सर दूसरों की स्वीकृति या समर्थन के बिना होता है। यह साहस दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनता है और परिवर्तन की दिशा में पहला कदम साबित होता है। अकेले खड़ा होना कठिन जरूर है, लेकिन यही सच्चे नेतृत्व और आत्मसम्मान की पहचान है।

जीव और आत्मा का संबंध ही प्रभु का प्रेम है : स्वामी श्रीधराचार्य

 

स्वामी श्रीधराचार्य के अनुसार, जीव और आत्मा का संबंध ही प्रभु का प्रेम है। जीवात्मा का अस्तित्व प्रभु के प्रेम की अनुभूति है, जो सभी जीवों को एकता में बांधता है। यह प्रेम ही जीवात्मा को उनके असली स्वरूप और परमात्मा के निकट लाता है। आत्मा और जीव का यह संबंध अनंत और अविनाशी है, जो सभी भौतिक बंधनों से परे है। प्रभु का प्रेम न केवल हमें जीवन की गहराइयों का अनुभव कराता है, बल्कि आत्मा की उन्नति का मार्ग भी प्रशस्त करता है। इस प्रेम के बिना, जीवात्मा का अस्तित्व अधूरा है।

84 लाख योनियों से मुक्ति कराती है भागवत कथा: स्वामी श्रीधराचार्य

भागवत कथा 84 लाख योनियों से मुक्ति का मार्ग दिखाती है। इस दिव्य कथा में भगवान विष्णु के अवतारों और उनके जीवन के पवित्र प्रसंगों का वर्णन होता है, जो आत्मा को मोक्ष की दिशा में अग्रसर करता है। यह मान्यता है कि भागवत कथा का श्रवण और चिंतन व्यक्ति को सांसारिक बंधनों से मुक्त कर सच्ची आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है। भगवान श्रीकृष्ण के लीलाओं और उपदेशों का समागम, भक्तों के लिए मार्गदर्शक का काम करता है, जिससे जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति और परब्रह्म की प्राप्ति होती है। कथा का श्रवण आत्मा को परम आनंद और मोक्ष प्रदान करता है।

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